मूर्तिकला स्वयं में ही एक अदभुत कला है जहाँ भक्त और भगवान के बीच कड़ी यह मूर्ति बन जाती है भक्त अपनी श्रद्धा एवं विश्वास से उस मूर्ति में ही अपने भगवान को देखने लगता है यह उसकी आस्था का विषय है और इसी आस्था के कारण वह अपनी कल्पना से भगवान की अलग-अलग मूर्तियों को गढ़ता है। इसका साक्ष्य इतिहास के कई कालों में देखने को मिलता है।
इसी क्रम में मूर्तिकला के अपने अगले विशेषांक में हम आज मथुरा कला शैली के बारे में जानने का प्रयास करेंगे
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